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25 जनवरी
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मंजिलें मंज़िलें हैं सामने, रास्ता निहां निहाँ नहीं याद कर उसे ज़रा तुझ पे तुझपे गर अयां अयाँ नहीं
स्वर्ग, नर्क हैं फल मिलेगा कर्म का सुख यहीं है दुःख यहीं पाप पुण्य के सबबदो जहां यहीं पे हैं, तीसरा जहां नहीं
चिलमनों की ओट से दीददीदे मह-ए-महजबीं जबीं हुयी रू-ब-रू मिले यहां, ख़्वाब का गुमां नहीं
है निशाने बाज़ वो सामने शिकार के
बेबसी तो देखिए, देखिये तीर है कमां नहीं
दो दिलों के दरमियां दरमियाँ थी तपिश वो जो प्यार कीआग तो लगी रही, बस उठा धुवां नहीं
नींव हुस्न की यहां, और छत जा रही है इश्क़ की रूठकर ज़िंदगी अभी उसेप्यार से बना है घर, ये फ़क़त मकां रोक ले पुकार कर क्या तेरे ज़बां नहीं
जा रही है ज़िन्दगी रूठ कर तिरी उसे रोक ले पुकार कर, मुंह में क्या ज़बां नहीं अब तू ही बता मुझे, क्या क़ुसूर है मिरा तेरे साथ मैं गया हूं, कहां-कहां नहीं जाएगा भला किधर, तू बता 'रक़ीब' अबहर तरफ़ तरफ हैं मयकदे, मैकदे चाय की दुकां नहींदुकाँ नही
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