<poem>
चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है
आप बतलायें हमें यह प्रार्थना प्राथना है
कर सको जितनी अधिक सेवा करो बस
भूल मत जाना उसे जिसने जना है
ज्ञान की गंगा बहाये जो धरा पर
वह भगीरथ अब हमें फिर ढूँढना है
जानते हैं हम बहुत बलवान हो तुम
पर विरोधी को नहीं कम आंकना है
साथ सूरज के तुझे फिर जागना है
सुन 'रक़ीब' ईश्वर इश्वर सभी का हित करेगा
ध्यान में रखना, तुझे जो माँगना है
</poem>