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चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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चुप कहाँ रहना, कहाँ पर बोलना है
आप बतलायें हमें यह प्रार्थना है
कर सको जितनी अधिक सेवा करो बस
भूल मत जाना उसे जिसने जना है
ज्ञान की गंगा बहाये जो धरा पर
वह भगीरथ अब हमें फिर ढूँढना है
जानते हैं हम बहुत बलवान हो तुम
पर विरोधी को नहीं कम आंकना है
चार पैसे क्या हुये उड़ने लगे वह
मत उड़ें इतना यहीं सब छोड़ना है
नींद आँखों में भरी है, सोएगा कब
साथ सूरज के तुझे फिर जागना है
सुन 'रक़ीब' ईश्वर सभी का हित करेगा
ध्यान में रखना, तुझे जो माँगना है