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|रचनाकार=उत्पल डेका
|अनुवादक=नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया
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<poem>
एक संगीत लेख की तरह
एक जुलाहा पक्षी
कपिलिपरिया साधु गाता है

मैने सुना है
मौन का हर स्वर

दोपहर को गाया जाने वाला गीत
इसके बिना और क्या है ?

शब्द उलझकर खो जाते हैं
गुमनामी के किसी कोने में


शायद मैं उन्हें
अतीत की परिचित आवाज़ों के बीच
कभी नहीं पाऊँगा

'''मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया'''
</poem>
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