Last modified on 1 फ़रवरी 2025, at 00:59

मालकोस / उत्पल डेका / नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया

एक संगीत लेख की तरह
एक जुलाहा पक्षी
कपिलिपरिया साधु गाता है
 
मैने सुना है
मौन का हर स्वर
 
दोपहर को गाया जाने वाला गीत
इसके बिना और क्या है ?
 
शब्द उलझकर खो जाते हैं
गुमनामी के किसी कोने में
 

शायद मैं उन्हें
अतीत की परिचित आवाज़ों के बीच
कभी नहीं पाऊँगा

मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया