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गर तुम्हें साथ मेरा गवारा नहीं
मासेवा एक के पास मेरे तो अब कोई चारा नहीं
बिन तुम्हारे मिरा अब गुज़ारा नहीं
इसलिए मैंने उसको पुकारा नहीं
क्यों ख़फ़ा हो गए क्या ख़ता है मिरी
हक़ तुम्हारा कभी हमने मारा नहीं
हसरतेहसरत-ए-दीद दिल की, रही दिल में हीतू ने रुख से ज़ुल्फ़ों को अपनी संवारा तू ने हटाया नहीं
बू-ए-गुल की तरह है मिरी ज़िन्दगी
मेरी आहों में हरगिज़ शरारा नहीं
आज है कौन दुनिया में ऐसा 'रक़ीब'
गर्दिशे वक़्त ने जिसको मारा नहीं
 
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