तुम लाजवाब थे और लाजवाब हो
ये किसने कह दिया तुम्हें तुम ख़राब हो
पहले भी थे मगर अब लाजवाब हो
किसने ये कह दिया तुमसे ख़राब हो
कलियों सा ढंग है, फूलों सा रंग है
और मानिंद-ए-चाँद की तरह, तुम पुर-शबाब हो
पढ़ता रहा तुम्हें, पढ़ता रहूँगा मैं
दुनिया में लोग जो, दुश्मन हों प्यार के
इक दिन जैसे भी हो ख़ुदा करे, उन पर अज़ाब हो क्या थे कभी कहो क्या हो गए 'रक़ीब'जब हो करम ख़ुदा, का बेहिसाब हो
होते हुए 'रक़ीब', तुम दिल के हो क़रीब
तुम पर करम ख़ुदा, का बेहिसाब हो
</poem>