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गुरूवार को 17:00 बजे {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विनीत पाण्डेय
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|संग्रह=
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<poem>
आँकड़े बतला के यूँ मत मुस्कुरा कर देखिए
है हक़ीक़त क्या ज़रा गर्दन उठा कर देखिए
आपको दिख जाएगी गुरबत, उदासी, बेबसी
हो कभी फ़ुर्सत तो उस बस्ती में जा कर देखिए
एक कमरा, फूस की छत, रोशनी को इक दिया
एक दिन बस आप उसके घर बिता कर देखिए
मिल रहा राशन उसे जो क्वालिटी उसकी है क्या
उसके बच्चे खा रहे जो आप खा कर देखिए
लोग जिनसे आपने बदलाव के वादे किए
इक दफ़ा उनसे ज़रा नजरें मिला कर देखिए
</poem>