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आँकड़े बतला के यूँ मत मुस्कुरा कर देखिए / विनीत पाण्डेय
Kavita Kosh से
आँकड़े बतला के यूँ मत मुस्कुरा कर देखिए
है हक़ीक़त क्या ज़रा गर्दन उठा कर देखिए
आपको दिख जाएगी गुरबत, उदासी, बेबसी
हो कभी फ़ुर्सत तो उस बस्ती में जा कर देखिए
एक कमरा, फूस की छत, रोशनी को इक दिया
एक दिन बस आप उसके घर बिता कर देखिए
मिल रहा राशन उसे जो क्वालिटी उसकी है क्या
उसके बच्चे खा रहे जो आप खा कर देखिए
लोग जिनसे आपने बदलाव के वादे किए
इक दफ़ा उनसे ज़रा नजरें मिला कर देखिए