भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
}}
<poem>
रुक गयी नाव जिस ठौर स्वयं, माझी, उसको मझधार न कह !
ढूँढे, आलोक-लोक अपना,
तव सिन्धु पार जाने वाले को, निष्ठुर, तू बेकार न कह !
</poem>