भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माझी उसको मझधार न कह / जानकीवल्लभ शास्त्री
Kavita Kosh से
					
										
					
					
रुक गयी नाव जिस ठौर स्वयं, माझी, उसको मझधार न कह !
         कायर जो बैठे आह भरे
         तूफानों की परवाह करे 
हाँ, तट तक जो पहुँचा न सका, चाहे तू उसको ज्वार न कह !
         कोई तम को कह भ्रम, सपना
         ढूँढे, आलोक-लोक अपना, 
तव सिन्धु पार जाने वाले को, निष्ठुर, तू बेकार न कह !
	
	