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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
एक रोज़ मैंने देखीं मछलियाँ अनगिनत
उनमें दमक रहे थे अनेकों सूर्य
कुछ रोज़ बाद मैंने देखा भदरंग एक जाल
मछलियाँ अब नहीं थीं
बस जल था रंगहीन और उदास होता
रचनाकाल : जुलाई 1991
</poem>
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एक रोज़ मैंने देखीं मछलियाँ अनगिनत
उनमें दमक रहे थे अनेकों सूर्य
कुछ रोज़ बाद मैंने देखा भदरंग एक जाल
मछलियाँ अब नहीं थीं
बस जल था रंगहीन और उदास होता
रचनाकाल : जुलाई 1991
</poem>