भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुर्गे जी कुकड़ू-कूँ बोले ।<br>
पंख कबूतर ने हट झट खोले ॥<br>
‘कुहू-कुहू’ जब कोयल बोली ।<br>