बाल कविताएँ / भाग 11 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
हुआ सवेरा
हुआ सवेरा जागी चिड़िया ।
भगा अँधेरा जागी चिड़िया ॥
सूरज ने भी ली अँगड़ाई ।
धूप –भरी चादर फैलाई ॥
हरी घास प बिखरे मोती ।
धरती भी है सोना बोती ॥
मुर्गे जी कुकड़ू-कूँ बोले ।
पंख कबूतर ने झट खोले ॥
‘कुहू-कुहू’ जब कोयल बोली ।
वन –उपवन में मिसरी घोली ॥
फूलों ने जब देखा हँसकर ।
महक उठा खुशबू से अम्बर ॥
प्यारे पक्षी
पक्षी हमको लगते प्यारे ।
बोली व रंग न्यारे – न्यारे ॥
मीठी बोली सूरत काली ।
उड़ती कोयल डाली-डाली ॥
फुर्र-फुर्र गौरैया आती ।
चहक-चहककर हमें जगाती ॥
हरे पंख चोंच है लाल ।
मिट्ठू तोता खाता माल ॥
मैना सबके मन को भाती ।
तरह –तरह के गीत सुनाती ॥
नदी किनारे ध्यान लगाए ।
खड़े बगुले जी शीश झुकाए ॥
जहाँ कबूतर पंख हिलाते
रोग वहाँ पर कभी न आते ॥
मीठी बोली
कुहू-कुहूकर कोयल बोली
कानों में मिसरी –सी घोली ।
बाग़ बगीचे गूँज उठे हैं ,
नाच उठी बच्चों की टोली ।।
डोल रही है डाल-डाल पर ,
सबके मन में खुशियाँ भरती ।
मीठे प्यारे गीत सुनाकर ,
सबको अपने वश में करती ॥
‘जब मुँह खोलो मीठा बोलो’-
कोयल सबसे कहती है ।
मीठी बोली में जीवन की
सारी खुशियाँ रहती हैं ।।