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06:36, 28 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
<poem>
यूँ उठा करती है सावन की घटा।
जैसे उठती हो जवानी झूमके॥
जिस जगह से ले चला था राहबर।
हम वहीं फिर आ गए हैं घूमके॥
आ गया ‘सीमाब’ जाने क्या ख़याल?
ताक़ में रख दी सुराही चूमके॥
</poem>