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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
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अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना स जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं

तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये ..

इच्छाएँ मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी

खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपर प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..

</poem>
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