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13:26, 4 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब।
पहले जहाँ क़फ़स था, वहाँ आशियाँ बना॥
सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर।
तू आशियाँपरस्त है, जा, आशियाँ बना॥
</poem>