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ज़िन्दगी ! तुझ को क्या है अन्दाज़ा / साग़र पालमपुरी
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16:58, 1 सितम्बर 2009
हर कोई कस रहा है आवाज़ा
चोट
गर्चे बहुत पुरानी थी
चोट
ज़ख़्म
उसका
है आज
तक ताज़ा
हमको
अपनी ख़ताओं का ‘साग़र’भुगतना
ही
पड़ेगा
पड़े गा
ख़मियाज़ा
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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