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|रचनाकार=अवतार एनगिल
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}}
<poem>कौंध के बाद की गरज तले
सड़क के बीचों-बीच
वे मिले अचानक
और चल दिये
साथ-साथ
बिना किसी
भूमिका के
लगे बतियाने
एक-दूसरे के दर्पण बने
यहां तक
कि उनके पास
कोई शब्द न रहे

उन्होंने इक-दूजे को
नहीं सुना
पर सुना
किसी ने
किसी को
नहीं छूआ
पर छूआ

अंततः
उसने कहा
मैं जानती थी
कि निश्चित था
हमारा मिलना
कौंध के बाद की गरज-सा
</poem>
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