भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौंध के बाद की गरज तले / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
कौंध के बाद की गरज तले
सड़क के बीचों-बीच
वे मिले अचानक
और चल दिये
साथ-साथ
बिना किसी
भूमिका के
लगे बतियाने
एक-दूसरे के दर्पण बने
यहां तक
कि उनके पास
कोई शब्द न रहे
उन्होंने इक-दूजे को
नहीं सुना
पर सुना
किसी ने
किसी को
नहीं छूआ
पर छूआ
अंततः
उसने कहा
मैं जानती थी
कि निश्चित था
हमारा मिलना
कौंध के बाद की गरज-सा