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01:24, 28 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
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<poem>देखा है क्या सागर तुमने
फ़िर ठहरो आईना देखो
पलकों के भीतर अपने ही
सीपी बन जाओ चाहो तो
या अनंत गहरे में डूबो..
१८.११.१९९६</poem>