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सागर / राजीव रंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
देखा है क्या सागर तुमने
फ़िर ठहरो आईना देखो
पलकों के भीतर अपने ही
सीपी बन जाओ चाहो तो
या अनंत गहरे में डूबो..
१८.११.१९९६