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देह नृत्यशाला / अशोक चक्रधर

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|रचनाकार=अशोक चक्रधर
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अँधेरे उस पेड़ के सहारे
 
मेरा हाथ
 
पेड़ की छाल के अन्दर
 
ऊपर की ओर
 
कोमल तव्चा पर
 
थरथराते हुए रेंगा
 
और जा पहुँचा वहाँ
 
जहाँ एक शाख निकली थी ।
 
काँप गई पत्तियाँ
 
काँप गई टहनी
 
काँप गया पूरा पेड़ ।
 
देह नृत्यशाला
 
आलाप-जोड़-झाला ।
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