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बैठे भंग छानत अनंग-अरि रंग रमे / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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04:02, 31 अक्टूबर 2009
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[[Category:पद]]
<poem>बैठे भंग छानत अनंग-अरि रंग रमे,
अंग-अंग आनँद-तरंग छबि छावै है।
कहै 'रतनाकर' कछूक रंग ढंग औरै,
बैल पै बिराजि संग सैल-तनया लै बेगि,
कहत चले यों कान्ह बाँसुरी बजावै है॥
</poem>
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