::तो जाकर उधर निकलते थे।
:::(९२)
तुम भीख माँगने जब आये,
::धरती की छाती डोल उठी,
क्या लेकर आऊँ पास? निःस्व
::अभिलाषा कर कल्लोल उठी।
कूदूँ ज्वाला के अंक - बीच,
::बलिदान पूर्ण कर लूँ जबतक,
"मत रँगो रक्त से मुझे", बिहँस
::तसवीर तुम्हारी बोल उठी।
:::(९३)
</poem>