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|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
आँख दे आईना दे
लेकिन पहले चेहरा दे

दरिया जैसा सहरा दे
उस में एक जज़ीरा दे

लौटा ले अपनी बस्ती
मुझ को मेरा सहरा दे

मैं पैदल वो घोड़े पर
सर नेज़े से ऊँचा दे

रहने दे जलती धरती
तू सूरज को साया दे

हिरणी जैसी आँखों को
सहराओं का सपना दे
</poem>
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