भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँखें दें आइना दें / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
आँख दे आईना दे
लेकिन पहले चेहरा दे
दरिया जैसा सहरा दे
उस में एक जज़ीरा दे
लौटा ले अपनी बस्ती
मुझ को मेरा सहरा दे
मैं पैदल वो घोड़े पर
सर नेज़े से ऊँचा दे
रहने दे जलती धरती
तू सूरज को साया दे
हिरणी जैसी आँखों को
सहराओं का सपना दे