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11:46, 23 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
चिंता-मनि मंजुल पँवारि धूरि-धारनि मैं,
::कांच-मन-मुकुर सुधारि रखिबौ कहो ।
कहै रतनाकर वियोग-आगि सारन कौं,
::ऊधौ हाय हमकौ बयारि भखिबौ कहौ ॥
रूप-रस-हीन जाहि निपट निरूपि चुके,
::ताकौ रूप ध्वाइबौ औ’ रस चखिबौ कहौ ।
एते बड़े बिस्व माहिं हेरें हूँ न पैये जाहि,
::ताहि त्रिकुटी मैं नैन मूँद लखिबौ कहौ ॥
</poem>