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18:13, 28 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ठाकुर
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<poem>
ठाढ़ी रहो, डगो न भगो, अब देखो जो है कछु खेलत ख्यालहिं ।
गावन दै री, बजावन दै सखी, आवन दै इतैं नंद के लालहिं ॥
’ठाकुर’ हौं रँगिहौं रँग सों अंग, ओड़ि हौं बीर ! अबीर गुलालहिं ।
धूंधर में, धधकी में, धमार में, धसिहौं अरु धरि लैहौं गोपालहिं ॥
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