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अपनी बेटी के लिए-3 / प्रमोद त्रिवेदी
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07:46, 14 मार्च 2010
कितने-कितने तरह से ढलती हो तुम
कहानी में।
जितनी हो दूर हमसे
पास भी हो उतनी ही
फ़ासले हैं तो कैसे हैं ये
अपनी दरमियानी में।
</poem>
अनिल जनविजय
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