968 bytes added,
15:07, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
प्रथम भुराई प्रेम-पाठनि पढ़ाई उन
::तन-मन कीन्हें बिरहागि के तपेला हैं ।
कहै रतनाकर त्यौं आप अब तापै आइ
::सांसनि की सांसति के झारत झमेला हैं ॥
ऐसे-ऐसे सुभ उपदेश के दिवैयनि की
::ऊधौ ब्रजदेश मैं अपेल रेल-रेला हैं ॥
वे तौ भए जोगी जाइ पाइ कूबरी कौ जोग
::आप कहैं उनके गुरु हैं किधौं चेला हैं ॥70॥
</poem>