भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वह शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गयी जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
वो नहर एक क़िस्सा है दुनिया के वास्ते
फ़रहाद ने तराशा था ख़ुद को चटान पर
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
मिरे वुजूद से यूँ बेख़बर है वो जैसे
वो एक धूपघड़ी है मैं रात का पल हूँ
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
उन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
मेरी बुनियादों में कोई टेढ़ थी
अपनी दीवारों को क्या इल्ज़ाम दूँ
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया
वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़ुज़ूल गया
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
आगही<ref>जानकारी</ref> से मिली है तनहाई
आ मिरी जान मुझको धोखा दे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
रात सर पर है और सफ़र बाकी
हमको चलना ज़रा सवेरे था
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
सब हवाएँ ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझको एक कश्ती बादबानी<ref>पालवाली नाव</ref> दे गया
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूँ चाहा था
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
मेरे कुछ पल मुझको दे दो बाकी सारे दिन लोगो
तुम जैसा जैसा कहते हो सब वैसा वैसा होगा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
</poem>
{{KKMeaning}}