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रिश्ता नहीं किसी का किसी फ़र्द से मगर / ज़ैदी जाफ़र रज़ा
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06:19, 1 मई 2010
|रचनाकार = ज़ैदी जाफ़र रज़ा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रिश्ता नहीं किसी का किसी फ़र्द से मगर.
आंधी चमन में आई तो सब बेखबर रहे,
कुछ सुर्ख फूल हो गए क्यों ज़र्द से मगर.
</poem>
अनिल जनविजय
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