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धनक-धनक मेरी पोरों के ख़्वाब कर देगा / परवीन शाकिर
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<poem>
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा
क़बा ए जिस्म के हर तार से गुज़रता हुआ
किरन का प्यार मुझे आफताब कर देगा
जुनूँ पसंद है दिल और तुझ तक आने में
बदन को नाव लहू को चिनाब कर देगा
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा
</poem>
Shrddha
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