भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उसी के कदमों की आहट सुनाई देती है<br />कभी-कभार वो छत पर दिखाई देती है<br />
मैं उससे बोलूं तो वो चुप रहे खुदा की तरह<br />मैं चुप रहूं तो खुदा की दुहाई देती है<br />
वो एक खत है जिसे मैं छिपाये फिरता हूं<br />जहां खुलूस की स्याही दिखाई देती है<br />
तमाम उम्र उंगलियां मैं जिसकी छू न सका<br />वो चूड़ी वाले को अपनी कलाई देती है<br />
वो एक बच्ची खिलौनों को तोड कर सारे<br />बड़े सलीके से मां को सफाई देती है<br />