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वो एक खत है / जयकृष्ण राय तुषार
Kavita Kosh से
उसी के क़दमों की आहट सुनाई देती है
कभी-कभार वो छत पर दिखाई देती है
मैं उससे बोलूँ तो वो चुप रहे ख़ुदा की तरह
मैं चुप रहूँ तो खुदा की दुहाई देती है
वो एक ख़त है जिसे मैं छिपाए फिरता हूँ
जहाँ खुलूस की स्याही दिखाई देती है
तमाम उम्र उँगलियाँ मैं जिसकी छू न सका
वो चूड़ी वाले को अपनी कलाई देती है
वो एक बच्ची खिलौनों को तोड़ कर सारे
बड़े सलीके से माँ को सफ़ाई देती है