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रचनाकार=सर्वत एम. जमाल
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इरादा है तो पहले डर निकालो
जब उड़ना चाहते हो,पर निकालो

जुलूस आगे निकलता जा रहा है
सुनो! अब हाथ के पत्थर निकालो

मेरे मुंह पर मेरी तारीफ़ कर ली
चलो अब पीठ पर खंज़र निकालो

तुम्हे हक चाहिए तो उसकी खातिर
कभी आवाज़ तो बहार निकालो

बदन मैला न हो जाए तुम्हारा
हवा में गर्द है चादर निकालो

अगर मंजिल को पाने की लगन है
तो अपनी राह से कंकर निकालो

फकत बातों से क्या होता है 'सर्वत'
बचा है कुछ अगर जौहर निकालो</poem>