भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शृंगार रस / रस प्रबोध / रसलीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शृंगार रस

सर्वप्रथम वर्णन का कारण

रस को रूप बखानि कै बरनौ नौ रस नाम।
अब बरनत सिंगार कों जाही ते सब काम।।60।।

तेहि सिंगार को देवता कृष्ण लीजिऔ जानि।
और बरनहूँ कृष्ण लौं कृष्ण बरन पहिचानि।।61।।

सोइ देवतादिकन मैं सब के हैं सिरताज।
याते उनको रस भयउ सबन माहि रसराज।।62।।

अरु विबिचारी सकल कवि याही रसमय होत।
याहू ते सब रसनि मैं यह रसराउ उदोत।।63।।

शृंगार रस में आठों रसों के व्यभिचारी के उदाहरण

मोहन लखि यह सबनि ते है उदास दिन राति।
उमहति हँसति बकति डरति विगचति विलखि रिसाति।।64।।

जब निकस्यो सब रसन मैं यह रसराज कहाइ।
तब बरन्यौ याकौ कविन सब तें पहिले ल्याइ।।65।।