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सपना सगुन देखी / भवप्रीतानन्द ओझा
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सपना सगुन देखी,
हरषी उठली सखी,
दूती सें कहथी बतिया;
फरकी उठलोॅ बाम अँखिया,
आजु रे आवतो कालिया।
उरेखी बांधली जूरा,
लगावली पानक बीरा,
बिछावली झारी सेजिया,
जागि रहली धनी रतिया;
आजु रे आवतो कालिया।
श्याम शबद सुनी,
चमकी उठली धनी,
मिलली आगू लागिया;
प्रेमें छल-छल चारी अँखिया;
आजु रे आवलोॅ कालिया।
अंग परश सुखें मुरछिता पति बुकें,
मुख सें नें फुटे बतिया;
भवप्रीता भावे वनमलिया;
आजु रे आवलोॅ कालिया।