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सुप्त भावों को जगाती लेखनी / बाबा बैद्यनाथ झा

सुप्त भावों को जगाती लेखनी।
देश को आगे बढ़ाती लेखनी।

भाव कटुता का मिटाकर नित्य ही,
प्रेम के पथ को दिखाती लेखनी।

आपसी सौहार्द को देती बढ़ा,
द्वेष को जड़ से मिटाती लेखनी।

मूर्खता को दूर भी करती यही,
विद्वता भी है दिलाती लेखनी।

जो सदा संलिप्त है दुष्कर्म में,
पाप से उसको बचाती लेखनी।

जा नहीं सकते कभी दिनकर जहाँ,
पर वहाँ भी मात्र जाती लेखनी।

तोप बम तलवार से भी यह अधिक,
शौर्य साहस शक्ति लाती लेखनी।