स्तुति शाह लद्धा बिलग्रामी / रसलीन
1.
नूर भरो सोहै दरबार पोर पोर, किधौं
तूर के तजल्ली को जुहूर आन छायो है।
मूसा लखि वाहि भए चेत तें अचेत यातें,
चेत ह्वै अचेतन सकल भेद पायो है।
ताहि तजि भूल मत कुमत अली की गत,
अछत रहत कत कंद पै भुलायो है।
पतित पनाह यह लुत्फ उल्लाह यह,
मीर लद्धा साह यह जग माँहि आयो है॥16॥
2.
देखत ही दरबार शाह लद्धा जू को सुख आँखिन को भए
और तन पुरुसत्त पाए।
स्रवन को भयो सुख नाद स्तुति सुनैं तें और नासा सुख
भयो जस गंधन पाए।
रसना भयो है सुख आयत परसादहि अच्छो कहाँ लौं
बखानों अबलै सुखदै गनाए।
जैसे इंद्र वन सुख पाए रसलीन तैसे चाहो मन मेरे निस-
दिन सुख छाए॥17॥
3.
नूरानी दरबार शाह लद्धा जू को नित चित देत अनंद।
दिन-निस देखत पंथ तहाँ को जहाँ न सूरज चंद॥
बिनय करत रसलीन दुवारे काटे जग के फंद।
दुख दंदन के तिमिर हरन को दीजे जोति अमंद॥18॥
4.
ईमान दीन को जो तू चाहै मन
तो चल देख साह लद्धा जू के चरन।
रौसन दोऊ जहान जिंद पीर सुर ज्ञान
जाके देखे ही से दृष्टि दालिद्दर हरन॥19॥