अचल सुहाग कियो गुरु मेरो।
मर्म किपाट खुले सब मनके दिल दीदार महल में हेरो।
दृष्ट अदृष्ट एक मत डोले सार शब्द को कियो नबेरो।
कर अनुराग भाग सब जागे कर्म-मर्म को मिटो अंधेरो।
जूड़ीराम सत्गुरु की महिमा कर अपने सो प्रीत घनेरो।
अचल सुहाग कियो गुरु मेरो।
मर्म किपाट खुले सब मनके दिल दीदार महल में हेरो।
दृष्ट अदृष्ट एक मत डोले सार शब्द को कियो नबेरो।
कर अनुराग भाग सब जागे कर्म-मर्म को मिटो अंधेरो।
जूड़ीराम सत्गुरु की महिमा कर अपने सो प्रीत घनेरो।