अपनी नज़र से उसने गिराया कहां कहां
जिसको इधर-उधर से उठाया कहां कहां
घर में रहें या घर से हों बाहर यहां वहां
नज़रों का नीर हमने छुपाया कहां कहां
ताउम्र हर सफर में दिया साथ किस तरह
अफ़सोस ज़िन्दगी ने सताया कहां कहां
अब तो इसी मुकाम से ये देखना भी है
चलता है मेरे साथ में साया कहां कहां
दुश्वारियों के साथ समझना है ये हमें
अपना यहां पे है तो पराया कहां कहां
आखिर किसी पड़ाव पे देखूं मैं ज़िन्दगी
ये ख़्वाब किस तरह से सजाया कहां कहां