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अब इन्क़लाब को आवाम से डर लगता है / संजय चतुर्वेदी

सूरमाओं को सर-ए-आम से डर लगता है
अब इन्क़लाब को आवाम से डर लगता है

हमीं हैं ज़ेर-ए-बहस और हमीं ख़ुदा-ए-बहस
फिर हमें किसलिए अंजाम से डर लगता है

वज़ीफ़ाख़ोर रवायत ने तोड़ डाला है
हुनर को ग़र्दिश-ए-अय्याम से डर लगता है

हमारे वर्ग से संघर्ष गया शक़ आया
जैसे अखरोट को बादाम से डर लगता है

हमीं हैं रश्क़-ए-मलाइक हमीं नबी अव्वल
हमीं को नींद में इल्हाम से डर लगता है

(2016)