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अब कहाँ होती हैं जुल्फ ओ रुखसार की बातें / पल्लवी मिश्रा

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अब कहाँ होती हैं जुल्फ ओ रुखसार की बातें,
गूँज रही है हर तरफ बंदूक औ तलवार की बातें।

आतंकवाद के साये में पल रहे दरिंदे वहशत के,
नफरत के माहौल में दबकर रह गयीं प्यार की बातें।

उस ऊपर की दुनिया में सबका मजहब एक रहेगा,
हम हिन्दू, वो मुसलमाँ, ये हैं इस संसार की बातें।

सात कत्ल, दो अपहरण, औ दस के घर में डाका,
कमोबेश हर रोज यही रहती है अख़बार की बातें।

उस शहर मंे आज भी कर्फ्यू की ख़ामोशी है,
दहशत के इस सन्नाटे में कौन करे सरकार की बातें?

अबला कह कर जिनपर तूने जुल्म किया है सदियों से
होकर सबला पूछ रही हैं कानून और अधिकार की बातें।

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में गूँज रही जो प्रेम की वाणी,
वही सदा मेरे दिल की है, वही मेरे अश्आर की बातें।