Last modified on 9 मई 2009, at 18:28

अब तुम कहाँ हो मेरे वृक्ष ? / हिमांशु पाण्डेय

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 9 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय }} <poem> एक कागज़ तुम्हारे दस्तख़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
 
एक कागज़
तुम्हारे दस्तख़त का
मैंने चुरा लिया था ,

मैंने देखा कि
उस दस्तख़त में
तुम्हारा पूरा अक्स है ।

दस्तख़त का वह कागज़
मेरे सारे जीवन की लेखनी का
परिणाम बन गया ।

मैंने देखा कि
अक्षरों के मोड़ों में
जिंदगी के मोड़ मिले ,

कुछ सीधी सपाट लकीरें थीं
कहने के लिए कि
सब कुछ ऐसा ही सपाट, सीधा है
तुम्हारे बिना ।

मुझे एक ख़त लिखना
गर हो सके,
क्योंकि वह तो ख़त नहीं,
दस्तख़त था ।