Last modified on 10 दिसम्बर 2017, at 09:12

अल्पविराम के बाद / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 10 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुना है
कोई मुझे जानता नहीं
कोई पहचानता नहीँ
जैसे आ गई हूँ
अपने कुनबे से बिछड़कर
एक बिल्कुल नए इलाके में

तो किसने कहा था मुझसे
ले लो अल्पविराम
जहाँ छोटे-से अंतराल में
बदल जाती है पूरी दुनिया
कुचल देते हैं बेरहमी से
रेस के घोड़े

तो क्या
मैं नहीं तनिक शर्मिंदा हूँ
अभी भी मैं ज़िंदा हूँ
रेस के घोड़ों के बीच
कछुए के पाँव पे चलते हुए
सूरज के साथ टहलते हुए!