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असिआ कोस से ननदिया ऐलै हे, कि देहरिया बैठलै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ननद दूर से अपने पिता के घर आकर दरवाजे पर बैठती है तथा अपनी भाभी से पानी, भोजन, साड़ी और खोंयछे के लिए आग्रह करती है। भाभी सभी चीजों के लिए अभाव तथा असमर्थता का बहाना करके ननद की उपेक्षा करती है।
ननद के प्रति भाभी की उपेक्षा हमेशा से होती आई है। यह कुछ स्वाभाविक भी है; क्योंकि भाभी के आने के पहले बहन का अधिकार अपने भाई पर रहता है, जिसे भाभी छीन लेती है। फिर भी, भाई का अपनी बहन के प्रति कुछ स्नेह बना रहता है, जो उसकी पत्नी को खटकता है। इसलिए, भाभी की ओर से ननद की उपेक्षा स्वाभाविक ही है।

असिआ<ref>अस्सी</ref> कोस से ननदिया ऐलै हे, कि देहरिया बैठलै हे।
भौजो हे, एक रे चुरु<ref>चुल्लू; उँगलियों को मोड़कर गहरी की हुई हथेली; आधी अंजली</ref> पनिया रे पिलाबऽ, कि घ्ज्ञर जैबै हे॥1॥
नहीं मोरा हे ननदो घयेलिया<ref>घड़ा</ref> पनियाँ, हे ननदो लोटबा पनियाँ हे।
ननदो, पनभरनी बसै दूर देस, घयेलिया आजु सून<ref>रिक्त; खाली; शून्य</ref> छै हे॥2॥
असिआ कोस से ननदिया ऐलै हे, कि देहरिया बैठलै हे।
भौजो, एक रे कौरे<ref>कौर; कवल; निवाला</ref> भोजन रे जमाबऽ<ref>जिमाना; खाना खिलाना</ref>, कि घर जैबै हे॥3॥
नहीं मोरा हे ननदो हँड़िया<ref>हंडी; हाँड़ी; हंडिका</ref> भतबा हे, कढ़इया<ref>कड़ाही</ref> दलबा हे।
ननदो हे, रसोइया<ref>भोजन बनाने वाला</ref> बसे दूर देस रे, हड़ियबा आजु सून छै हे॥4॥
असिआ कोस से ननदिया ऐलै हे, कि देहरिया बैठलै हे।
भौजो हे, एक मुट्ठी खोंइछा<ref>मोड़ा हुआ आँचल। विदाई के समय स्त्रियों के आँचल में चावल या धान के साथ रुपये, हल्दी, दूब आदि देने की एक प्रथा</ref> दिलाबऽ, कि घ्र जैबै हे॥7॥
नहीं मोरा हे ननदी कोठिया<ref>कोठी, मिट्टी का बना हुआ एक लंबा-चौड़ा पात्र, जिसमें अनाज रखा जाता है</ref> चौरबा<ref>चावल</ref> हे, ननदो ठेकबा<ref>ईंट का बना हुआ अनाज रखने का एक प्रकार का घर। यह, कहीं-कहीं बाँस की फट्टी से भी बनाया जाता है</ref> धनमा हे<ref>धान</ref>।
ननदो, भैया बसे दूर देश, कोठिया आजु सून छै हे॥8॥

शब्दार्थ
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