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आकाशलीना / सुशील कुमार झा / जीवनानंद दास

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सुरंजना!
वहाँ मत जाओ,
बात भी ना करो उससे!
चांदनी से दग्ध इस रात में,
लौट आओ, सुरंजना!

लौट आओ,
मेरे दिल में!

मत जाओ
इतनी दूर,
कि लौट ही ना पाओ!

तुम हो नर्म नम जमीन जैसी,
और उसी पर उगे हुए घास की तरह ही है प्यार!
आज तुम्हारे मन में पनप रहा प्यार ही है शायद ,
क्या कुछ और भी कहना है उससे?

हवाओं के अंदर मंडराती एक और हवा,
आकाश के उस पार एक और भी आकाश!

लौट आओ, सुरंजना!