पत्तियाँ फिर झरीं
आँधियों से घिरी
फूल की देहरी
खुशबुओं का महल
काँपकर ढह गया
आखिरी धूप-क्षण
झील में बह गया
ढंग आकाश के
देखकर रितु डरी
पत्तियाँ फिर झरीं
छावनी रंग के
राख में सो गयी
दिन-दहाड़े
खबर आँख की खो गयी
ठूँठ करते रहे
नीड़ से मसखरी
पत्तियाँ फिर झरीं
रोज़ टूटी-हुई साँस के
ज़िक्र हैं
पतझरों को
नये जश्न की फ़िक्र है
टहनियों की हँसी
हो गयी बावरी
पत्तियाँ फिर झरीं